Sunday, 19 May 2013

Prerna...a short story written sometime ago!


प्रेरणा
ओस की बूँदों से लदी हरी पत्तियां, फूलों की पंखुड़ियाँ से ढलकती ये पानी की लड़ियाँ, सुबह की गरम गरम चाय के साथ एक ताजगी का एहसास जगाती हैं, इन्ही ख्यालों में उलझी हुई प्रेरणा अखबार उठा के अंदर आ गयी| सुबह सबसे पहले उठ के सब के जाने की तैयारी करना ये उसकी दिनचर्या की शुरुआत है| गौरव के दफ्तार ले जाने के लिए टिफ़िन, बेटे का नाश्ता, कहीं बस छूट ना जाये उफ़... फुरसत कहाँ है सुबह कुछ सोचने की| आज सुमित का पेपर भी है, रात को देर तक पढता रहा है अब दस मिनट पहले उठ के तैयार होगा| अगर जल्दी उठाया तो नाराज़ भी होगा और “पेपर के पहले मूड खराब मत किया कीजिये मम्मी” की नसीहत भी देगा|
आठ बजे तक सब कुछ तैयार करके प्रेरणा ने सुमित को उठाया और देखने गयी की गौरव तैयार हुए की नहीं, ये कोई बच्चों से कम समय थोड़े ना लेते है तैयार होने में| सुमित स्कूल चला गया, नौ बजे गौरव भी रवाना हो गए| अब थोड़ी देर आराम से बैठ के नाश्ता करते हुए प्रेरणा ने चैन की सांस भरी| सुबह सुबह घर के इतने सारे काम करते हुए ऐसा लगता है जैसे वो एक घडी की सुई से बंधी हुई डोर पे चलती जाती है जहाँ रुकी, संतुलन बिगाड़ा और धम्म से निचे गिर पड़ोगे| बाकी सब की तो हफ्ते में एक दिन छुट्टी रहती है पर इस ‘हाउस- वाइफ’ की नौकरी में कोई छुट्टी ही नहीं है|
ऐसे तो प्रेरणा अपने कॉलेज की टौपर थी, गोल्ड मेडल विजेता, पर जब घर की ज़िम्मेदारी का सवाल मन में आया तो उसने अपने आप को परिवार पहले इसी सोच से ज़्यादा सहमत पाया| आज सब काम निपटा के बैठी ही थी की फोन की घंटी बज उठी| “हैलो प्रेरणा..कैसी है? तेरी आवाज़ कितने साल बाद सुन रही हूँ? हमें तो बस भूल ही गयी है|”....इतनी जल्दी इतनी सारी बातें कह देने वाली नीता ही हो सकती है “ हैलो नीता...मैं ठीक हूँ, तू कैसी है सुना?” अपनी खनकती आवाज़ में नीता ने बताया की अपने किसी काम से वो इस शहर में दौरे पर आई है, उसके पापा से यहाँ का नंबर मिला उसको| शाम को काम खतम करके मिलने आएगी|
नीता प्रेरणा के कॉलेज के दिनों की पक्की सहेली थी| यूँ तो क्लास टौपर प्रेरणा थी पर नीता भी काफी होशियार थी| नीता ने प्राथमिक कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद अपनी पढाई जारी रखी और फिर प्रोफ्फेसर के पद पर कार्यरत थी| प्रेरणा ने दोपहर के खाने का काम खत्म करके आराम करने की सोची ही थी की दरवाज़े की घंटी बजी| दरवाज़ा खोलते ही प्रेरणा ने अपने सामने नीता को पाया| हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए चमकती आँखों के साथ नीता ने उसे गले लगा लिया| “बिलकुल नहीं बदली तू तो... आज भी उतनी ही सुन्दर है” “अरे तू तो शाम तक आने वाली थी ना? इतनी जल्दी कैसे आ गयी?”, प्रेरणा ने पूछा| “क्यों मैडम अब बिना अप्पोइंत्मेंट के मिलती नहीं क्या?” “नहीं ऐसी बात नहीं हम घर में रहने वाले लोग हैं भई टाइम ही टाइम है” मुस्कुरा के प्रेरणा ने कहा| यूँ ही एक दूसरे का हाल चाल पूछते दोनों सहेलियों का वक्त पर ध्यान ही नहीं गया| चाय की चुस्की लेते हुए नीता ने पूछा “ये तो बता घर पर रहने के अलावा क्या करती है? घर के कामो के अलावा अपने लिए भी कुछ समय निकलती है की नहीं?” इस प्रश्न का उत्तर कुछ सकुचाते हुए प्रेरणा ने दिया “अरे कहाँ समय मिलता है अपने लिए...दिन भर कभी ये कभी वो पता ही नहीं चलता कब दिन निकल गया|”
नीता ने कुछ नाराज़ होते हुए कहा “ये तो कोई बात नहीं हुई....तू तो इतनी होशियार है, तुझे ऐसी बातें शोभा नहीं देती| तुझसे तो हम सबकी कितनी उम्मीदें थी... इतनी टैलेंटेड होते हुए भी कुछ क्यों नहीं करती?”
“ऐसा नहीं है की मैं कुछ करना नहीं चाहती थी पर जिम्मेदारियों के आगे वक्त कम पड़ गया| सोचा तो मैंने भी बहुत कुछ था” प्रेरणा ने कहा| नीता – “ठीक है शादी के बाद नहीं कर पाई पर अब भी कोई नयी कोशिश क्यों नहीं करती?”
“अब कहाँ घर के काम करते करते सारा ‘भूगोल’ गोल हो चूका है| ये सब अब मेरे बस की बात नहीं...” कहते हुए प्रेरणा ने बात को टालना चाहा| तभी सुमित ने आके अपना बैग कंधे से गिरते हुए घर में प्रवेश किया, “मम्मी भूख लगी है, जल्दी कुछ खाने को दीजिए कल की तैयारी शुरू करनी है फिर”|
प्रेरणा – “पहले इधर आओ ये नीता मौसी है इनसे मिलो, ये सोशियोलॉजी की प्रोफेस्सर हैं|” “नमस्ते मौसी जी” कह कर सुमित ने उनका अभिवादन किया| “मौसी पर आप से एक बात पूछूँ मुझे तो यह विषय बिलकुल पसंद नहीं है, आप इसे पढ़ाती कैसे है?” हंस कर नीता ने कहा “बेटा अब अगर हम नहीं पढायेंगे तो आपको बोर कौन करने आएगा? वैसे तुम्हें यह विषय पसंद नहीं या कठिन लगता है?”
“मौसी मेरी तो समझ के ही बाहर है यह!” सुमित ने हाथ खड़े करके कहा| “अरे तो तुम अपनी मम्मी से क्यों नहीं समझते वो तो इस की एक्सपर्ट है|” हैरानी से प्रेरणा की ओर देखते हुए सुमित ने कहा “मम्मी.. एक्सपर्ट?” नीता ने कहा “क्यों? तुम्हें पता नहीं तुम्हारी मम्मी से तो  हमारा पूरा कॉलेज पढ़ने आता था, इनका समझाया हुआ कोई भूल ही नहीं सकता कभी|” प्रेरणा ने कहा “अरे वो तो १५ साल पुरानी बात हो गयी, आज कल के बच्चों को पढ़ाना थोड़ी आसान है|” नीता ने कहा “तुम तो यूहीं कहती रहती हो, समय के साथ थोड़ा पढ़ने के तरीके में फर्क आ जाता है, ज्ञान थोड़े ना बदल जाता है|”
सुमित ने चहकते हुए पूछा “सच मम्मी आप पूरे कॉलेज को पढ़ाती थी? आपने कभी बताया क्यों नहीं?” फिर “अब तो बस आप मुझे पढ़ाओगे” का एलान भी कर दिया| “हाँ हाँ देख लूँगी अगर कुछ समझ आया तो पढ़ा दूंगी” मुस्कुरा के प्रेरणा बोली| “जाओ तुम्हारा खाना लगा दिया है, खाना खा कर थोडा आराम कर लो|”
“अच्छा प्रेरणा मैं चलती हूँ अब, तेरे साथ बात करने में समय का पता ही नहीं लगा, रात की गाड़ी से मुझे वापस भी जाना है| पर जाते हुए तुझसे एक वादा चाहती हूँ कि तू अपने परिवार के साथ कुछ समय अपने लिए भी निकलेगी, घर से बाहर निकल के नौकरी करना ज़रुरी नहीं पर अपने ज्ञान को घर में ही उपयोग में तो ला| अपने बच्चों को ही कम से कम अपनी प्रतिभा का लाभ लेने दे| घर के कामों को अच्छी तरह निपटने से जो सुकून तुझे मिलता है, उसके साथ अगर अपने ज्ञान को भी उपयोग में लाएगी तो तुझे खुशी का भी अनुभव होगा| और तू इतनी काबिल है अगर तू नहीं वक्त का सदुपयोग कर पायेगी तो कौन करेगा| तेरा तो नाम ही “प्रेरणा” है, जो कॉलेज के समय दूसरों के लिए एक आदर्श हुआ करती थी,  आज लगता है अपने अंदर के प्रेरणा स्रोत को भुला बैठी है|” इतना कह कर नीता प्रेरणा के गले लग गयी| प्रेरणा ने भी भारी मन से नीता को विदा किया|
नीता की बातों से प्रेरणा के अंदर सोयी हुई कुछ आकाँक्षाएं दुबारा दबी हुई जुबां से शोर करने लगी| “क्या सच में मैं अपने आप को खो चुकी हूँ? घर परिवार सब का हर काम सही वक्त पे करते करते कहीं मैं खुद को वक्त देना भूल गयी हूँ क्या?, सुमित कितने अचरज से देख रहा था मुझे, अपनी माँ के व्यक्तित्व के इस पहलू से तो वो पूरी तरह अनजान ही है| उसके लिए तो उसकी माँ एक गृहणी से ज्यादा कुछ भी नहीं, क्या कभी उसे भी लगता होगा की मेरे अन्य दोस्तों की माँओं की तरह मेरी माँ भी बहुमुखी प्रतिभा वाली क्यों नहीं है?”
शाम ढलने लगी थी, थके हारे गौरव दफ्तर से वापस आये| चाय का कप हाथ में पकड़ते हुए प्रेरणा ने बताया की आज नीता मिलने आई थी| गौरव ने उत्साहित हो के पूछा “तुम्हारी कॉलेज की सहेली? वो तो बड़ी स्मार्ट थी|” प्रेरणा ने भी हाँ में हाँ मिलते हुए कहा “ हाँ, अब भी वैसे ही है, अब तो बड़ी प्रोफेस्सर हो गयी है| पर इतने सालो बाद मिलके भी ऐसा लगा जैसे अभी तो हम साथ पढ़ा करते थे|” गौरव “चलो ये तो बहुत अच्छी बात है, आज कल तो वैसे भी कामकाजी महिलाओं का ज़माना आ गया है|” तभी सुमित भी उठ के पापा के पास आ कर बैठ गया| गौरव “कैसा हुआ इम्तिहान? कल की तैयारी हो गयी?” सुमित “आज का पेपर ठीक हुआ, कल की तैयारी कुछ तो हो गयी है बाकी मम्मी करवाएंगी|” उसका जवाब सुनकर गौरव ने हैरान होके पूछा “मम्मी क्यों करवाएंगी?” सुमित “आपको पता नहीं, मुझे नीता मौसी ने बताया मम्मी कॉलेज की टौपर थी, सब उनसे पढ़ने आते थे| मैं तो इनसे ही पढूँगा|”
प्रेरणा ये तो जानती थी की उसका परिवार उससे बहुत प्यार करता था पर आज सुमित की बात से उसे ये एहसास भी हुआ की अपनी मम्मी के प्रति सुमित के दिल में आज एक गर्व की भावना भी आ गयी थी| ये एहसास जैसे नीता ने कहा था एक अलग खुशी भी दे रहा था| प्रेरणा ने मन ही मन में निश्चय किया की अब वो अपने ज्ञान को व्यर्थ नहीं जाने देगी|
रात को खाने का काम खत्म करके और सुमित का रिवीजन करवाके अपने कमरे में गयी तो गौरव टीवी देख रहे थे| प्रेरणा को देख के गौरव ने कहा “हो गयी पढाई? सुमित बहुत उत्साहित था तुम से पढ़ने के लिए|” वो मुस्कुराई और बोली “हाँ, बड़े दिनों बाद किताबो को हाथ लगाया तो थोड़ी मुश्किल हुई पहले पर जब एक लय आ गयी तो कोई तकलीफ नहीं हुई|” गौरव “प्रेरणा मुझे कभी लगता है की मैंने तुम्हे कही बाँध तो नहीं दिया?” प्रेरणा “नहीं, ऐसा तो नहीं है| मैंने खुद ही घर संभालना अपनी पहली ज़िम्मेदारी बनाया था|”
गौरव बोले “और वो तुमने बहुत बखूबी संभाला भी पर मुझे आज ऐसा महसूस हो रहा है की शायद नीता से मिलने के बाद तुम्हे कहीं अपने निर्णय पर अफ़सोस तो नहीं हो रहा| मैं ये कहना चाहता हूँ की अगर तुम्हारे मन में कुछ करने की इच्छा है तो मैं तुम्हारे साथ हूँ और जिस तरह जीवन की इस डगर पर तुमने हमेशा मुझे सहयोग दिया है उस्सी तरह तुम मुझे भी अपने साथ खड़ा पाओगी|” प्रेरणा गौरव की ये बात सुनके बहुत ही हल्का महसूस कर रही थी| कुछ करने की चाह अब मन में धीरे धीरे बलवती हो रही थी| इन्ही विचारों के साथ कब आँख लगी पता ना चला|
सुबह सुबह रोज की तरह उठ कर चाय बनायी पर ओस से ढकी घास आज प्रेरणा को और ज़्यादा प्यारी लग रही थी| आज की सुबह ताजगी के साथ साथ कुछ नयी उम्मीदें भी ले के आई है| आज से वो बस घड़ी की सुई पर चलेगी नहीं बल्कि समय का बेहतर से बेहतर उपयोग करेगी| शायद इस प्रेरणा को किसी की ‘प्रेरणा’ की ही ज़रूरत थी, जो उसे अब मिल गयी है| अपने ज्ञान को अब वो व्यर्थ नहीं करेगी किसी और से नहीं खुद से ही ये वादा किया है उसने आज| 

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